Madhu varma

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लेखनी कविता -तुम न आए तो क्या सहर न हुई - ग़ालिब

तुम न आए तो क्या सहर न हुई / ग़ालिब


तुम न आए तो क्या सहर[1] न हुई
हाँ मगर चैन से बसर[2] न हुई
मेरा नाला[3]सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

शब्दार्थ:

1 प्रात:
2 गुज़रना
3 रोना-धोना, शिकवा

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